कुण्डलिनी Blog 5

      
     
   
   स्थुल शरीर मे ही सुक्ष्म शरीर भी गुंथा हुवा है । जिस प्रकार प्रथ्यक्ष शरीर मे प्रत्यक्ष अंग - अवयव होते है , उसी प्रकार सुक्ष्म शरीर मे भी विशीष्ट शक्ति केन्द्र होते है  । नदी मे भंवर बनते है , तेज गरम हवा मे चक्रवात बनते है उसी प्रकार में भी ऐसे भ्रमर पडते है  , इन्हे ग्रंथीयां कहा जाता है । मनुष्य शरीर मे यह ग्रथीयां विभीन्न प्रकार के  शक्ति केन्द्र है । ईन्हि शक्ति केन्द्रों की मनुष्य की प्रतिभा को बलवान बनाने मे महत्वपुर्ण भुमीका रहती है । इन्हे गजमणि , सर्पमणि  की उपमा भी दी जाती है । यह मनुष्य मे ओजस , तेजस एवं वर्चस भरने वाले अग्नी केन्द्र है । जीवन मे अनेक प्रकार की विलक्षणताओं को चलाने , बढाने , घटाने में इन अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियों की महती भुमिकाएं होती है । सौन्दर्य , जीवट , कामोत्तेजना , पराक्रम , आवेश आदि उतार - चढाव हारमोनों की न्युनाधिकता के उपर निर्भर है । अनेक प्रतिभाओं और विशेषताओं के साथ इन हारमोन ग्रंथियों का गहरा संबंध है । अध्यात्म क्षेत्र मे जो विभीन्न प्रकार के यंत्रों का उल्लेख है वे यंत्र ईन्ही ग्रंथियों का प्रतिनिधित्व करते है ।
   
 
 मंत्र विज्ञान , तंत्र विज्ञान और यंत्र विज्ञान को साधना जगत की त्रिविध विशीष्टतायें समझा जाता है । मंत्र विज्ञान मे शब्द शक्ति का प्रयोग है । मंत्र के अक्षरों का अनवरत जप करते रहने से उनका एक चक्र बन जाता है  और उनकी सुदर्शन चक्र जैसी गति विद्युतीय चमत्कारों मे परिणत होती है । मंत्र शब्दवेधि बाण की तरह काम करते है । अभीष्ट लक्ष्य को बेधते है ।



  मंत्र शक्ती
मन को झंकृत व सक्रिय करने वाला जो तंत्र है, उसे मंत्र कहते है ।
मन को समस्त इन्द्रियों मे सर्वोपरी माना है । मंत्र हमारे मन के समस्त तंतुओं , स्नायुओं के साथ-साथ समस्त इंन्द्रियों को प्रभावित करते है और जब मानसीक शक्ती का विस्तार मंत्रों के द्वारा होता है , तब यह न केवल हमारी इन्द्रियों और शरीर को ही प्रभावित करता है अपितु इसकी शक्ती अन्य व्यक्तीयों,उनके मस्तिष्क , इन्द्रियों और यहां तक कि हर प्रकार की जड, चेतन वस्तुओं को भी प्रभावित करने लगती है ।
----मंत्र शक्ती के वैज्ञानिक कारण -
   -जब हम कीसी एक अवस्था मे बैठकर किसी मंत्र का उच्चारण करते है, तो सबसे पहले यह क्रिया योग से संबंधित होती है ।एक विशेष मुद्रा मे बैठने से सर्वप्रथम योग का अभ्यास होता है , जिसके साथ मिश्रण होता है मंत्रोच्चारण का । हमने जिस मंत्र का भी चयन किया है, सर्वप्रथम वह हमारे ही शरीर , इन्द्रियों व मन-मस्तिष्क पर प्रभाव डालता है । हमारे मस्तिष्क मे सायनोवियलनामक द्रव्य विद्यमान रहता है । सायनोवियलका काम है हमे आघात व भय से बचाना । कीसी भी कारण से ऊत्पन्न प्राणघातक भय के समय यह सायनोवियलनामक पदार्थ ही हमारी हृदयाघात से रक्षा करता है ।
--परीक्षणों से पता चला है की महाकाली के कीसी भी मंत्र का जप करते समय क्रां, क्रीं, क्रों इत्यादि का उच्चारण सायनोवियलके स्त्राव को अप्रत्याशित रुप से बढा देता है , जिससे साधक को किसी भी प्रकार के विकट प्रयोग के समय भय से मुक्ती मिलती है व साधक स्वयं मे ऊर्जा का अनुभव करता है ।
-- सन् 1928 मे हैंसबर्गर नाम के वैज्ञानिक ने मस्तिष्क मे लयबद्ध विद्युत तरंगों का पता लगाया । परीक्षणों से पता चला है की अल्फा तरंगे अतिन्द्रिय व्यवहार का कारण होती है जो की चिंतन-मनन करते समय अत्याधिक गतिशील हो ऊठती है । सम्मोहन-वशीकरण हेतु प्रयुक्त होने वाले मंत्रों के ऊच्चारण के समय इन्ही तरंगों के आवेग प्रभावित होते है , जिससे व्यक्ती में विचार-सम्प्रेषण व दुरदृष्टि विकसीत होती है । ईसी प्रकार प्रत्येक मंत्र एवं यंत्र की शक्ति के पीछे वैज्ञानिक कारण होते है ।
----मंत्र का अभ्यास करते समय कुछ नियमों का पालन करना अती आवश्यक होता है अन्यथा मंत्र ऊसी प्रकार निरर्थक होता है जैसे फुटे हुए घडे मे पानी ।
1. सर्वप्रथम आपने जिस मंत्र का भी चयन किया है , उसकी संपुर्ण साधना- प्रक्रिया की जानकारी होना नितांत आवश्यक है । यह सत्य है कि साधनाओंकी जो शास्त्र वर्णित विधि है , उसमे रंचमात्र त्रुटि भी असफलता का कारण हो सकती है , साथ हि ईस शास्त्र वर्णित विधि मे किसी प्रकार का संशोधन स्वयं करना भी उचित नही है ।
2.
साधनाओं मे पुर्ण शुद्धता, सात्विकता तथा मंत्र का सही -सही व शुद्ध ऊच्चारण इन बातों पर ध्यान देना प्राथमीक आवश्यकता है ।
3.
जहां तक संभव हो, पुजा स्थल एकांत मे होना चाहिए , जहां की साधना काल मे कोई व्यवधान ना पडे ।
4.
जिस किसी मंत्र का जाप करना है ऊसकी शक्ती पर पुर्ण विश्वास होना चाहिए
5.
मंत्र का उच्चारण करते समय ध्यान को एकाग्र करने की आवश्यकता होती है । मंत्र जपते समय विचार स्थीर है , ध्यान पुर्ण एकाग्र है और मंत्र की शक्ति पर पुर्ण विश्वास है तो असफलता का कोई कारण निर्मीत ही नही होता ।
6.
साधना का ऊद्देश स्थीर होना चाहिए । मंत्र जाप की संख्या को घटाना नहि चाहिए , पहले दिन जीतनी संख्या मे मंत्र जाप किया हो नियमीत ऊसी संख्या मे जाप करे । संख्या बढाई जा सकती है किन्तु बढाई हुयी संख्या को घटाना तात्काल असफलता का कारण होता है ।
7.
मंत्र को बदलने से जाप निरर्थक हो जाता है ।
8.
प्रती वर्ष होली , दीपावली , शिवरात्रि , नवरात्रि के शुभ मुहुर्तों पर अपने मंत्र का जाप अवश्य करे जीससे प्राप्त की हुयी सफलता कायम रहती है ।

    
    तंत्र प्रकारान्तर से कुण्डलिनी विज्ञान है  । उसमे प्राण उर्जा को प्रचण्ड किया जाता है और किन्ही व्यवधानों को , परेशानीयों को तोडने - मरोडने मे उसका प्रयोग किया जाता है । मारण , मोहन , उच्चाटन , बेधन , वशीकरण आदि मे तंत्र के प्रयोगों को कार्यान्वित किया जाता है । तंत्र के दो मुल प्रयोजन है वह है सम्मोहन और विनष्टिकरण । 
   
    






Comments

Popular posts from this blog

7 सफेद घोडों की तस्वीर घर मे लगाएं , लक्ष्मि का सदैव निवास रहता है।

ऐश्वर्य प्राप्ती के लिए .. भुवनेश्वरी साधना