ऐश्वर्य प्राप्ती के लिए .. भुवनेश्वरी साधना


     



भुवनेश्वरी साधना 
 जो तीनो लोकों की सम्पदा साधक पर लुटाने को तत्पर रहती है ।

समस्त ब्रम्हाण्ड के तेज का निचोड दस महाविद्याओं के रुप मे परिगणित होता है । कोई भी व्यक्ति तब तक तंत्र के क्षेत्र मे सफल नही समझा जाता , जब तक वह कोई महाविद्या सिद्ध न कर ले ।  सभी दस की दस महाविद्याएं अपने आप मे बेजोड है , उच्च स्तरीय है । उनमे से एक महाविद्या है.. भुवनेश्वरी    भुवनेशिवरी शब्द भुवन से बना है , जिसका अर्थ है भुवनत्रय अर्थात तिनो लोक , अतः भुवनेश्वरी तिनो लोकों मे सबके द्वारा पुजनीय है ।     यदि व्यक्ति एक हि साथ उच्च स्तरीय आध्यात्मिक उत्थान एवं पुर्ण भौतिक सफलता का आकाक्षी है, तो ऊसे भुवनेश्वरी साधना सम्पन्न करनी चाहिए ।





कृष्ण जब मथुरा से प्रस्थान कर द्वारीका की ओर चले थे , तो नगर बसाने से पुर्व उन्होने भुवनेश्वरी का आशीर्वाद प्राप्त किया था । फलस्वरुप भगवान कृष्ण इस तरह की अनुपम नगरी का निर्माण सके । जो की अपने आप मे ही श्रेष्ठतम रही , अद्वितिय रही , पूर्ण सम्पन्नता युक्त रही ।
  •   जो व्यक्ति भुवनेश्वरी को सिद्ध कर लेता है वह धनवान , योगी और ज्ञानी हो जाता है । महायोगी गोरक्षनाथ ने अपने ग्रंथ कपालभेती मे इस साधना सम्बन्धित 12 बिन्दुओं को स्पष्ट किया है ।
  • ·         इस साधना को सिद्ध करने के उपरान्त व्यक्ति के पास स्वतः ही लक्ष्मी का अजस्त्र आगमन होने लगता है । उसे चिन्ता यह नही होती ,की वह धन कैसे कमाये ।
  • ·         ऐसे व्यक्ति को वाक् सिद्धि प्राप्त होती है  । वह जो भी बात कहता है , वह निकट भविष्य मे सत्य होती है ।
  • ·         ऐसा व्यक्ति पुर्ण सम्मोहन से युक्त , सुन्दर एवं स्वरुपवान हो जाता है ।
  • ·         ऐसे व्यक्ति के आगे शत्रु ठीक पीपल के पत्ते के भांती कम्पायमान रपते है और उसके सामने समर्पण भाव मे उपस्थित रहते है ।वे चाहकर भी उसका कुछ बिगाड नही पाते ।
  • ·         अधिकारी गण ऐसे व्यक्ति की बात टाल नहि सकते । वे स्वतः ही उसे सम्मान देने के लिए तत्पर रहते है ।
  • ·         ऐसा व्यक्ति --ज्योतिष , आयुर्वेद स पारद विज्ञान , यज्ञ विधान , हस्तरेखा आदि मे पारंगत हो जाता है ।
  • ·         वह स्वयं निरोग , स्वस्थ रहता है , और दुसरों को भी आरोग्य प्रदान करने का ज्ञान और सामर्थ्य़ रखता है ।
  • ·         उसकी अकाल मृत्यु नहि होती ।
  • ·         उसका पारिवारिक जीवन उसके पुर्ण अनुकुल रहता है ।
  • ·         ईस साधना से कुण्डलिनी जागरण के प्रक्रिया को बल मिलता है । उसके चक्रों मे स्पंदन होना शुरु हो जाता है ।
  • ·         ऐसा व्यक्ति समाज मे पुर्ण ख्यातीप्राप्त होता है ।
  • ·         ईस साधना मे सफल व्यक्ति जिस क्षेत्र मे भी उतर जाता है वहा संपुर्ण सफलता प्राप्त करता है ।
             निश्चय ही वह व्यक्ति दूर्भाग्यशाली होगा , जो इस प्रकार की अद्धितीय साधना के विधान को प्राप्त कर भी इसे हस्तगत न करे ।


साधना विधान --


            ·        इस साधना हेतु निम्न सामुग्रीयों की आवश्यकता पडती है ।--- भुवनेश्वरी यंत्र ,                  
            भुवनत्रय माला , ऐश्वर्य़ गुटीका ।


·         यह रात्रीकालीन साधना है ।


·         इस साधना को कीसी भी पुर्णिमा से प्रारम्भ किया जाता है ।


·         साधना काल मे मुख ऊत्तर दिशा का ओर हो ।


·         इसमे 3 दिन तक नित्य 21 माला मंत्र जप करना आवश्यक है ।


·         साधक को स्नान आदि से निवृत्त होकर , पिले रंग के वस्त्र धारण कर , इस


साधना हेतु पीले आसन पर बैठना चाहिए ।


·         भुवनेश्वरी यंत्र को अपने पुजा कक्ष मे बाजोट पर पीला वस्त्र बिछा कर उस पर


स्थापित करे  तथा यंत्र के उपर भुवनत्रय माला को रखे ।


·         घी का दीपक लगा दे ।


·         फिर कुंकुम , अक्षत तथा पुष्प चढाकर यंत्र , माला  इनका पुजन करे ।


·         ऐश्वर्य़ गुटिका को य़ंत्र कि दाहिनी ओर स्थापित करे तथा उसका भी पुजन करे ।


·         साधना काल मे घी का दीपक अखंडीत जलता रहे ।


·         फिर भुवनत्रय माला से निम्न मंत्र का जाप करे । मंत्र --- ।। ऊं ह्रीं श्रीँ क्लीं भुवनेश्वर्य़े नमः ।। ·         तीन दिन के बाद ऐश्वर्य़ गुटिका को धारण कर ले तथा यंत्र माला आदि सामग्रीयों


को नदी , तालाब या किसी जलाशय मे विसर्जित कर दे । बाकी पुजन सामग्री को भी


विसर्जित कर दे ।


·         किसी कुंवारी कन्या को य़थाशक्ति भोजन एवं द्रव्य प्रदाण करे ।


·         इसके ग्यारह दिन बाद ऐश्वर्य गुटिका को भी विसर्जित कर दे ।


यह मंत्र अपने आपमें ही अचुक एवं कलियुग में तीव्र प्रभाव दिखाने वाला है ।


             

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