गोवर्धण पर्वत तो कृष्ण ने ऊठाया था





          • गोवर्धण पर्वत तो कृष्ण ने ऊठाया था उन्मत्त इन्द्र के मानभंग के लिए , ग्वाल-बाल भी लाठीयां टेके थे । लाठीयों और पर्वत का तो कोई सामंज्यस्य ही नही था ,फिर भी लाठीयां टेकी गयी । ग्वालों के मन मे अहं की तुष्टी हुयी, कि हमने गोवर्धण ऊठाया और इन्द्र को परास्त कीया । आश्चर्य तो यह है, की जीसने गोवर्धण ऊठाया , वह कृष्ण बिल्कुल शांत है, उसमे कोई गर्वोक्ती नही है, हलचल भी नही है । इतिहास मे एक घटना घटी और अमर हो गयी ।
• जब भी कोई दिव्य चेतना लोक कल्यान हेतु पृथ्वी पर अवतरीत होती है, तब उनके अनन्त कार्यों को आयाम,पुर्णता देने के लिए अनेक देवता, किन्नर, गन्धर्व आदि मानव रुप मे आते है उनके सहचर के रुप मे, कर्मपात्र बन कर , लिला पात्र बन कर । अनेक ऋषी-मुनि-तपस्वी भी सानिध्य से कृतकृत्य होते है ऊस प्रथम पुरुष के साधारण सी लगने वाली मानव सुलभ लीलाओं को देखते हुए ।
• सही तो यही है, कि वह सतत गमनशील उदात्त पराशक्ति है, नवनवोन्मेष उसका स्वभाव है, जो अपने अनन्त कार्यों को पुर्णता देने के लिए स्वतः ही सक्षम होती है , फिर भी ग्वालों के मन मे अहं तो था ही कि इन्द्र को हमने पराजीत किया ।

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