मंत्र पर ध्यान केन्द्रित करना ।
क्या
मंत्र जाप करते समय मन को ध्यान केंद्रित करने मे कठीनाई होती है ?
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क्या मंत्र जाप करते समय मन ध्यान केंद्रित नही
होता ।
1) जब तक मन ध्यानस्थ नही
हो जाता तब तक मंत्र जाप का कोइ औचित्य नही है। ध्यान रहित मंत्र खोखला होता है, इसमे कोइ शक्ति नही
होती ।
2) मन मे उठने वाले अनेक
विचारों के कारण मन ध्यान केंद्रित नही हो पाता। इस वक्त अनुलोम-विलोम प्राणायाम का सहारा ले ।
3) प्राणायाम व्दारा मष्तिष्क
को विचारों से खाली कर लीया जाता है ,
तदुपरांत
किसी एक ऊद्दिष्ट पर ,ध्यान केंन्दित करते हुये
मंत्र को प्रस्पुटित किया जाता है । तेजी से सफलता प्राप्त होगी ।
4) भोजन करने के बाद ध्यान न
करे ।
5) मंत्र का उच्चारण शुद्ध तथा
स्पष्ट हो ।
6) जो साधक प्रथमावस्था को पार
करते हुये आगे कि सीढियों पर पहुंच गये हो उन्हे जादा सावधानी कि आवश्यकता होती है
, कई बार मन को भयभित करने
वाले प्रसंग उत्पन्न हो जाते है । इस वक्त तुरंत अपने गुरु का सहारा ले । गुरु का
ध्यान करे । गुरु ढोंगी नहि होना चाहिये । आवश्यक नहि की किसी जीवित
व्यक्ति को ही अपना गुरु बनाये । योग्य गुरु कि प्राप्ति नही होने पर , जो महापुरष परलोक प्राप्त हो गये हो उन्हे भी गुरु बनाया जा
सकता है ।
मंत्र जाप करते समय ध्यान योग्य बातें
:-
मंत्र जाप में प्रयोज्य वस्तुओं का ध्यान अवश्य रखना चाहिए आसन, माला, वस्त्र, स्थान, समय और मंत्र जाप संख्या इत्यादि का पालन करना चाहिए. मंत्र साधना यदि विधिवत की गई हो तो इष्ट देवता की कृपा अवश्य प्राप्त होती है. मंत्र जाप करने से पूर्व साधक को अपन मन एवं तन की स्वच्छता का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए. जाप करने वाले व्यक्ति को आसन पर बैठकर ही जप साधना करनी चाहिए. आसन ऊन का, रेशम का, सूत, कुशा निर्मित या मृगचर्म का इत्यादि का बना हुआ होना चाहिए. मंत्र के प्रति पूर्ण आस्था होनी चाहिए. मंत्रों में शाबर मंत्र, वैदिक मंत्र और तांत्रिक मंत्र आते हैं. मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक है कि मंत्र को गुप्त रखना चाहिए.
मंत्र के प्रकार
मंत्र जाप तीन प्रकार से किया जाता है :- मन, वचन अथवा उपाशु. मंत्रों को उच्चारण वाचिक जप कहलाता है, धीमी गति में जिसका श्रवण दूसरा नहीं कर पाता वह उपांशु जप कहलाता है और मानस जप जिसमें मंत्र का मन ही मन में चिंतन होता है. मंत्र पाठ करते समय मंत्रों का उच्चारण सही तरह से करना आवश्यक होता है तभी हमें इन मंत्रों का पूर्ण लाभ प्राप्त हो सकता है. मंत्रोच्चारण से मन शांत होता है, मंत्र जपने के लिए मन में दृढ विश्वास जरूर होना चाहिए तभी मंत्रों के प्रभाव से हम परिचित हो सकते हैं.
मंत्र जाप में प्रयोज्य वस्तुओं का ध्यान अवश्य रखना चाहिए आसन, माला, वस्त्र, स्थान, समय और मंत्र जाप संख्या इत्यादि का पालन करना चाहिए. मंत्र साधना यदि विधिवत की गई हो तो इष्ट देवता की कृपा अवश्य प्राप्त होती है. मंत्र जाप करने से पूर्व साधक को अपन मन एवं तन की स्वच्छता का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए. जाप करने वाले व्यक्ति को आसन पर बैठकर ही जप साधना करनी चाहिए. आसन ऊन का, रेशम का, सूत, कुशा निर्मित या मृगचर्म का इत्यादि का बना हुआ होना चाहिए. मंत्र के प्रति पूर्ण आस्था होनी चाहिए. मंत्रों में शाबर मंत्र, वैदिक मंत्र और तांत्रिक मंत्र आते हैं. मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक है कि मंत्र को गुप्त रखना चाहिए.
मंत्र के प्रकार
मंत्र जाप तीन प्रकार से किया जाता है :- मन, वचन अथवा उपाशु. मंत्रों को उच्चारण वाचिक जप कहलाता है, धीमी गति में जिसका श्रवण दूसरा नहीं कर पाता वह उपांशु जप कहलाता है और मानस जप जिसमें मंत्र का मन ही मन में चिंतन होता है. मंत्र पाठ करते समय मंत्रों का उच्चारण सही तरह से करना आवश्यक होता है तभी हमें इन मंत्रों का पूर्ण लाभ प्राप्त हो सकता है. मंत्रोच्चारण से मन शांत होता है, मंत्र जपने के लिए मन में दृढ विश्वास जरूर होना चाहिए तभी मंत्रों के प्रभाव से हम परिचित हो सकते हैं.
ध्यान
रखें कि मंत्र आस्था से जुड़ा है और यदि आपका मन इन मंत्रों को स्वीकार करता है
तभी इसका जाप करें। मंत्र जप करते समय शांत चित्त रहने का प्रयास करें। आंखें
यथासंभव बंद रखें और ध्यान दोनों आंखों के मध्य ही केन्द्रित रखें। वातावरण को
अगरबत्ती, धूप
या सुंगंधित पदार्थों का प्रयोग करके सुगंधित रखें। ईश्वर और स्वयं पर
विश्वास आवश्यक है।
मंत्र
शब्द का निर्माण मन से हुआ है। मन के द्वारा और मन के लिए। मन के द्वारा यानी मनन
करके और मन के लिए यानी 'मननेन
त्रायते इति मन्त्रः' जो
मनन करने पर त्राण यानी लक्ष्य पूर्ति कर दे, उसे मन्त्र कहते हैं। मंत्र अक्षरों एवं शब्दों
के समूह से बनने वाली वह ध्वनि है जो हमारे लौकिक और पारलौकिक हितों को सिद्ध करने
के लिए प्रयुक्त होती है। यह सृष्टि प्रकाश और शब्द द्वारा निर्मित और संचालित
मानी जाती है। इन दोनों में से कोई भी ऊर्जा एक-दूसरे के बिना सक्रिय नहीं हो सकती
और शब्द मंत्र का ही स्वरूप है। आप किसी कार्य को या तो स्वयं करते हैं या निर्देश
देते हैं। आप निर्देश या तो लिखित स्वरूप में देते हैं या मौखिक रूप में देते हैं।
मौखिक रूप में दिए गए निर्देश को हम मंत्र भी कह सकते हैं। हर शब्द और अपशब्द एक
मंत्र ही है। इसीलिए अपशब्दों एवं नकारात्मक शब्दों और वचनों के प्रयोग से हमें
बचना चाहिए।
मंत्र के जाप से पूर्व संबंधित देवता व गणपति के ध्यान के साथ गुरु का ध्यान, स्मरण और पूजन आवश्यक है। यदि कोई गुरु न हो तो जिस ग्रंथ से आपको मंत्र प्राप्त हुए हैं उस ग्रंथ के लेखक को अथवा शिव को मन में ही प्रणाम करें।
मंत्र के जाप से पूर्व संबंधित देवता व गणपति के ध्यान के साथ गुरु का ध्यान, स्मरण और पूजन आवश्यक है। यदि कोई गुरु न हो तो जिस ग्रंथ से आपको मंत्र प्राप्त हुए हैं उस ग्रंथ के लेखक को अथवा शिव को मन में ही प्रणाम करें।
जय
गुरुदेव
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