कुण्डलिनी Blog 6 ----
श्रीनगर से 97 मिल दुर अमरनाथ की महागुफा मे प्रकुर्ती का वह चमत्कार
होता है , जिसे देखने देश - विदेश से लाखो श्रद्धालु , वैज्ञानीक प्रतिवर्ष ऊमड
पडते है । ईस चमत्कार का कोई वैज्ञानीक विश्लेषण आज तक नहि किया जा सका ।
चन्द्रमा पृथ्वी की एक ऐसा दिशा मे अवस्थित है
की वह पृथ्वी वासीयों को एक पक्ष मे क्रमशः बढता हुवा पुर्णमासी के दिन पुर्ण
दर्शन देने की स्थिति मे आ जाता है , तो दुसरी बार क्रमशः घटता हुवा अमावश्या के
दिन बिलकुल छुप जाता है । यहॉं विज्ञान का कार्य - कारण सिद्धांत समझ मे आता है ।
कोई क्रिया विशेष कारणों की उपस्थिति मे ही सम्भव है पर जब कोई कार्य कारण बिना
सम्भव हो तब ? विज्ञान के पास उसका कोई जबाब नही । विज्ञान ऐसी
क्रियाएं नही मानता पर सृष्टी मे वह भी होता है तब मानना पडता है की सृष्टि मे सब
कुछ स्थुल पदार्थों का हि अस्तित्व नहीं बल्की चेतन का भी अस्तित्व है और स्थुल से
कही अधिक सशक्त है ।
अमरनाथ
ईस बात का प्रत्यक्ष ऊदाहरण है । अमावस्या के दिन उस बिन्दु पर कुछ भी नही होता
लेकीन अमावश्या के दुसरे ही दिन से चन्द्रकला की दशा की अनुसार एक शिवलिंग का
विकास प्रारम्भ हो जाता है और बढते - बढते पुर्णमासी के दिन पुर्ण शिवलिंग स्थापित
हो जाता है । अमरनाथ के ईस विचित्र रहस्य के कारण की खोज कोई वैज्ञानीक नही
कर सका । स्वयं को वैज्ञानीक कहलवाने वालों को भी ईसे ईश्वर का चमत्कार मानना पड
रहा है ।
गायत्री महाशक्ति का प्रयोग
दक्षिणमार्गी भी है और वाममार्गी भी । दक्षिण मार्ग याने सीधा रास्ता , शुभ लक्ष
तक ले जाने वाला रास्ता । वाम मार्ग याने कठीन रास्ता - भयानक लक्ष तक ले पहुंचने वाला रास्ता ।
चाकु के दोनो ऊपयोग हो सकते
है - कागज काटने , पेन्सिल बनाने , फल काटने आदि उपयोगी कार्यों के लिए भी और किसी
को चोंट पहुंचाने , अंग - भंग करने , प्राण लेने के लिए भी । य़ह प्रयोक्ता के समझ
और चेष्टा के ऊपर निर्भर है की वह उसका किस प्रकार उपयोग करे । माचिस से आग लगाकर
भोजन पकाने का भी काम कीया जा सकता है और कीसी का घर जलाने का काम भी ।
देवी भागवत मे गायत्री के
तांत्रीक प्रयोगों के लिए गायत्री तंत्र नाम का एक स्वतंत्र प्रकरण है । विश्वामित्र
कल्प मे उसके विशेष विधानों का वर्णन है । लंकेश तंत्र मे भी उसकी विधियां है । प्रायः सभी तांत्रीक प्रयोगों को अनाधिकारी व्यक्तियों के लिए
गोपनीय रखा गया है । ईस विद्या को कीसी कुपात्र के हाथों मे पहुंचा देने से
भस्मासुर जैसे संकट उत्पन्न हो जाते है । जो सीखाने वाले के लिए भी खतरा उत्पन्न
कर सकते है । पुरानों मे भस्मासुर की कथा ईसी संकेत की ओर ध्यान आकृष्ट
करने के लिए आयी है । गुरु द्रोणाचार्य ने जिन शिष्यों को बाण विद्या सिखायी
थी ऊन्होने उसी विद्या के सहारे गुरु का
ही कचमुर निकाल दिया । इसलिए उसके प्रयोगों को , विधानों को गुरु परम्परा मे ही
आगे बढाया जाता है ताकी पात्रता की परख करने के ऊपरान्त ही शिक्षा का चरण आगे बढे
।
रावन वेदों का विद्वान था ।
उसने चारो वेदों के भाष्य किए । पर उसने वेदमाता के वाममार्ग का ही उपयोग कीया ,
अनर्थकारी प्रयोजनों मे लगाया , स्वार्थ साधे , लंका को सोने की बनाया , देवताओं
को सताया , मारीच को वेश बदलने की विद्या सिखाकर सीता हरण का षडयंत्र बनाया । इन
तात्कालिक सफलताओं का लाभ लेते हुए भी अन्ततः स्वयं का सर्वनाश किया । यही है वाम
मार्ग - तंत्र मार्ग । भगवान राम - भगवान श्रीकृष्ण भी तंत्रमार्गी थे लेकीन यह
प्रयोक्ता के ईच्छा के उपर निर्भर है की वह ईस विद्या को सत्प्रयोजनों मे लगाएं , दुष्टों के और संकटों के संहार के लिए प्रयोग
करे , या दुष्प्रयोजनों मे लगाकर औरों का और अंततः स्वयं का अनर्थ करे ।
तन्त्र मार्ग एक प्रकार की
भौतिकी है । उसकी परिधि भी सीमीत है और प्रयोग भी कुछ दुर्बल स्तर के लोगों पर ही
होता है । बहेलिए लोमडी , खरगोश , कबुतर जैसे प्राणियों पर ही घात लगाते है । उनकी
हिम्मत शेर , चिता , बाघ , घडियाल जैसे जानवर पकडने की नही होती । ईनकी खाल की कीमत
भी बहुत गुणा मील जाती है परंतु साथ ही जान की जोखीम का खतरा भी है । ईसलिए
ज्यादातर प्रहार दुर्बलों पर ही होते है , जाल मे वही फंसते है ।
तन्त्र के अनेक माध्यम है ।
उनका प्रयोग किसी व्यक्ति विशेष को हानी पहुंचा सकता है । मारण , मोहन , उच्चाटन ,
वशीकरण , स्तम्भन आदि प्रयोगों के तन्त्र विधान है । इनमे किसी व्यक्ति विशेष को
खठीनाई मे फंसाया जा सकता है , प्रतिशोध लिया जा सकता है , पर ऐसा कुछ नही है जिसमे किसी को उंचा उठाने
, आगे बढाने या संकट से ऊबारने का उच्चस्तरीय प्रयोजन पुरा हो सके ।
गायत्री त्रीपदा है
। दक्षिण मार्ग मे उसका यही स्वरुप प्रयुक्त होता है । ब्राम्ही , वैष्णवी ,
शाम्भवी के रुप मे उसका तत्वज्ञान हृदयंगम किया जाता है । किन्तु जब उसका तान्त्रिक
प्रयोग करना होता है तो वह नाम रुप नही रहता । तब उसे त्रिपुरा या त्रिपुर भैरवी
कहते है । यह शिव के भुत - पिशाच्चों मे सम्मिलित है । इसे रौद्री या चण्डी भी
कहते है । यह तमोगुणी शक्तियां
है और अनर्थ करने मे सक्षम है । रक्तपात मे ईन्हे मजा आता है किन्तु ईसके साथ ही
ईनके प्रयोगों मे यह जोखीम भी है की तनिक - सी भुल हो जानेपर अपना क्रोध प्रयोक्ता
पर ही उलट देती है ऊसे उन्मादी , उद्धत , अपराधि स्तर का बना देती है । दुसरों को
हानी पहुंचाने वाले प्रयोग के ऊल्टा पडने पर स्वयं का अहित कर बैठते है । इसलिए
तंत्र साधना को गोपनीय रखा गया है ताकी कोई अनाधिकारी व्यक्ति ईसे हस्तगत न कर सके
।
बन्दुक की गोली आगे चलती है
, पर चलते समय पीछे को जोरदार धक्का भी मारती है और चलाने वाला यदी अनाडी रहा तो
अपना हंसली की हड्डी तोड कर बैठता है । ऐसे लोक मजाक , निंदा के पात्र बनते है ।
उनका कोई सच्चा मित्र नहि बनता , क्योंकि डर लगा रहता है की यह आज सहयोगी है लेकीन
कल किसि तनिक से कारण से रुष्ट होकर अनर्थ करने पर भी उतारु हो सकता है । ईसलिए
गायत्री ऊपासकों को दक्षिण मार्गी साधना के लिए ही प्रोस्ताहित किया जाता है ।
गायत्री के तान्त्रिक
प्रयोगों मे ब्रम्हदंड , ब्रम्हशीर्ष और ब्रम्हास्त्र का प्रयोग होता है । दण्ड
कहते है लाठी को या प्रताडना को ।
ब्रम्हदंड का प्रयोग करने
वाला किसी को आर्थिक , पारिवारिक , मानसिक क्षति पहुंचा सकता है ।
ब्रम्हशिर्ष दुर्बुद्धि
उत्पन्न करने के काम आता है । जीसपर यह प्रयोग होता है , वह सन्मार्ग छोडकर
कुमार्ग गामी हो जाता है , दुर्बुद्धि का आश्रय लेता है ।
ब्रम्हास्त्र सबसे बडा हथीयार
है , यह व्यर्थ नही जाता । उसमे सींह से लढने जैसा पराक्रम और जोखिम उठाना पडता है
। मेघनाद ने लक्ष्मन जी पर ब्रम्हास्त्र का ही प्रयोग किया था । कोई दुसरा होता तो
निश्चय ही जान से हाथ धो बैठता । स्वयं शेष जी के अवतार होने तथा सुखैन वैद्य और
हनुमान जी द्वारा संजीवनी की व्यवस्था करने पर ही उनके प्राण बच सके ।
विज्ञान का प्रत्येक पक्ष पर
किसी के लिए खुला नही होता । अणु बम बनाने वाले देश उसके रहस्यों को दुसरे देशों
को बताने के लिए तैयार नही होते । उसे नितान्त गोपनीय रखते है । ईसलिए की उसकी
विधी जानकर वरीष्ठता और समानता की प्रतिद्वन्दीता न करने लगे ।
तन्त्र ऐसा ही गोपनीय है ।
उसमे विपक्ष के बलिष्ठ हो जाने का और अपने पक्ष की वरिष्ठता छिन जाने का खतरा तो
है , एक और भी बडी बात है की उसका दुरुपयोग न होने लगे । फिर भी विश्व मे जीस
प्रकार से भयावह संकट निर्माण किये गये है उसके संहार के लिए वाममार्ग का प्रयोजन
आवश्यक होता जा रहा है क्यों की यह संकट सामान्य बेल - पत्री वाली पुजा से हरन
होने लायक नही है ईसके निराकरण के लिए ब्रम्हास्त्र जैसे प्रयोगों की ही आवश्यकता
महसुस की जा रही है ।
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