संन्यास का अर्थ भगोडा नही होता ।
-- संन्यास के विषय मे एक धारणा बन गई है , संन्यासी का मतलब होता है भगोडा , सब छोड-छाड कर भाग जाने वाला , पलायनवादी । संन्यास का यह अर्थ नही होता है । संन्यास का अर्थ होता है परमात्मा पर सब छोड देना । कृष्णार्पनमस्तु का अर्थ यही है की जो मैने कीया है वह तेरे आदेश से ही कीया है , तेरे लिए ही कीया है , मै तो एक निमीत्तमात्र हुं ।
--- एक बार एक सज्जन को संसार से विरक्ती हुयी और वह एक महात्मा के पास
पहुंचे । बोलने लगे की महाराज मेरा अब भौतीक चिजों मे कुछ मन नही लगता , मुझे अब अध्यात्मीक
होना है , संन्यास
लेना है ,आप
मुझे गुरु दिक्षा देने की कृपा करे और मुझे मार्ग बताएं । महात्मा ने ऊसके मन की
बात भांप ली और कहने लगे की आप यदि घर-द्वार छोडकर जंगलों मे भटकना चाहते है, तो मै लाख कोशीश करु , फीर भी आप मुक्ती के
राह पर नही चल पाओगे। आपको यदी वास्तव मे मुक्ती की अभीलाषा है तो अपने पारीवारीक
दाईत्वों का नीर्वाह किए बिना आपको मुक्ती नही मिल सकती । अतः आपको पारीवारीक जीवन
जीते हुए ही संन्यास लेना है । सज्जन ने महात्मा की बात मान ली और गुरु दिक्षा
लेकर अपने घर की ओर प्रस्थान कर गये ।
--- घर मे आकर सब कारोबार पत्नी और बेटे पर सौंप दिया और स्वतः विरक्त
होकर अपने कारोबारीक कार्य करने लगे । ऊनके बदले हुए स्वभाव को देखकर पत्नी और
बेटे को शंका हुयी की ईन्हे कीसी बिमारी ने तो नही घेर लिया ? जीससे ईन्हे आशंका हो
गई हो की अब शायद ईनका जीवन समाप्त होने के राह पर हो और पत्नी और बेटे को सब सौंप
देना चाहिए ।
पत्नी और पुत्र चिंतीत हो गये और हर समय ऊनके सानीध्य मे रहने की कोशीश करने लगे ।
पत्नी और पुत्र चिंतीत हो गये और हर समय ऊनके सानीध्य मे रहने की कोशीश करने लगे ।
--- सज्जन महात्मा के पास आये एक दिन अपनी पत्नी को लेकर , कहा , अब ईसको भी सन्यास दे
दें । महात्मा ने पुछा , मामला
क्या है ? सज्जन
ने कहां , मामला
यह है की इसके साथ मै कही जाता हुं तो लोग बडे शक की नजर से देखते है कि यह
संन्यासी किसकी स्त्री को भगा कर ले आया ? कई लोग पुछते है की यह
बाई कौन है ? और
ईस तरह पुछते है जैसे कि मै कोई अपराध कर रहा हुं । और अगर मै कहता हुं की मेरी
पत्नी है , तो
वे मुझे ईस तरह देखते है कि तुम होश मे हों ? पागल तो नही हो ? संन्यासी , पत्नी कैसे ? महात्मा ने कहा, ठिक , इसका भी संन्यास कर
देते है ।
--- एक सप्ताह बाद अपने छोटे बच्चे को भी महात्मा के पास लेकर आए , कि अब इसको भी संन्यास
दे दें । महात्मा ने पुछा, अब
इसका क्या मामला है ? सज्जन
ने कहा , अब
हम दोनो इसके साथ कही जाते है , तो लोग सोचते है कि
किसीके बच्चे को ले भागे । खबरे तो ऊडती ही रहती है न साघु किसी के बच्चे को लेकर
भाग गए , बच्चों
को ऊडाया जा रहा है । कल ट्रेन मे बैठे थे तो एक पुलिसवाला आ गया , कहने लगा निचे ऊतरो , थाने चलो , बच्चा कहा से चुराकर
लाया है ।
- ईसलिए
धारणा बन गई है की संन्यासी का मतलब होता है , भगोडा , पलायनवादी। सब छोड-छाड
कर चला जाए । किन्तु छोड-छाड के जाना मतलब फिर एक नये अहंकार की उत्पत्ती हो गई कि
मै सब छोडकर जा रहा हुं, मै
संन्यासी । यह तो फिर नई बंधन की व्यवस्था हो गई। नई जंजीरे ढाल ली तुमने । और
ध्यान रखना , पुरानी
जंजीरे बेहतर थीं , नई
ज्यादा खतरनाक है । क्यों की पहला अहंकार स्थुल था , अब बडा सुक्ष्म अहंकार
होगा कि मैने सब छोड दिया । लाखों पर लात मार दी । पत्नी- बच्चे छोड दिए , संसार छोड दिया , मैने बडा काम करके
दिखाया है । तुम भगवान के सामने और भी बडे दावेदार हो गए , तुम्हारा दावा नही मीटा
।
--- अब अगर भगवान तुम्हे मिल जाए तो तुम हजार शिकायते करोगे- कि अन्याय
हो रहा है मेरे साथ , मेने
ईतना छोड दिया और अभी तक मेरा मोक्ष नहि हुआ है । अभी तक स्वर्ग का कुछ पता नही है
, अभी
तक अप्सराएं नही मिली । कहां है अप्सराएं ? कहां है झरने शराब के ? बहिष्त कहां है ? और क्या चाहिए अब , सब तो छुडवा दिया । सब
तो दांव पर लगा दिया , बचा
तो कुछ भी नही है ।
-- कुछ भी दांव पर नहि लगा है । तुमने कुछ छोडा भी नही । छोडने का
अर्थ होता है , परमात्मा
पर सब छोड देना । कबीर ज्ञान को ऊपलब्ध हो गये फिर भी चादरे बुनते रहे । चादर मे
रामरस बुनते रहे । अब वह साधारण चादर नही है । गोरा कुम्हार , तुलाधर वैश्य , रैदास चमार अगनीत
महात्मा , संन्यासी
ज्ञान को ऊपलब्ध हो गये परंतु अपना सांसारीक कर्म करते रहे ।
--गीता
का सार यही है की तु अर्पित हो जा , सब उसपर छोड दे , तु निमीत्तमात्र रह जा
। वह युद्ध करवाए तो युद्ध कर , वह जो करवाए सो कर , तु अपने (मै) को बिच मे
न ला । तु नीर्नायक मत बन । तेरा नीर्नायक बनना ही तेरा संसारी बनना है , तेरे दुःखों का कारण है
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