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Showing posts from March, 2017

ऐश्वर्य प्राप्ती के लिए .. भुवनेश्वरी साधना

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      भुवनेश्वरी साधना     जो तीनो लोकों की सम्पदा साधक पर लुटाने को तत्पर रहती है । समस्त ब्रम्हाण्ड के तेज का निचोड दस महाविद्याओं के रुप मे परिगणित होता है । कोई भी व्यक्ति तब तक तंत्र के क्षेत्र मे सफल नही समझा जाता , जब तक वह कोई महाविद्या सिद्ध न कर ले ।  सभी दस की दस महाविद्याएं अपने आप मे बेजोड है , उच्च स्तरीय है । उनमे से एक महाविद्या है.. भुवनेश्वरी      भुवनेशिवरी शब्द भुवन से बना है , जिसका अर्थ है भुवनत्रय अर्थात तिनो लोक , अतः भुवनेश्वरी तिनो लोकों मे सबके द्वारा पुजनीय है ।       यदि व्यक्ति एक हि साथ उच्च स्तरीय आध्यात्मिक उत्थान एवं पुर्ण भौतिक सफलता का आकाक्षी है, तो ऊसे भुवनेश्वरी साधना सम्पन्न करनी चाहिए । कृष्ण जब मथुरा से प्रस्थान कर द्वारीका की ओर चले थे , तो नगर बसाने से पुर्व उन्होने भुवनेश्वरी का आशीर्वाद प्राप्त किया था । फलस्वरुप भगवान कृष्ण इस तरह की अनुपम नगरी का निर्माण सके । जो की अपने आप मे ही श्रेष्ठतम रही , अद्वितिय रही , पूर्ण सम्पन्नता युक्त रही । ...

मनोकामना पुर्ती के लिए सुवर्ण संधी । नवरात्री साधना।

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----- नवरात्रि की नौ रातों और दस दिनों के दौरान , शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि वर्ष में चार बार आता है।   पौष ,   चैत्र , आषाढ , अश्विन   प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों -   महालक्ष्मी , महासरस्वती   और महा दुर्गा   के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हें   नवदुर्गा   कहते हैं।   दुर्गा   का मतलब जीवन के   दुख कॊ हटानेवाली   होता है।  नौ देवियाँ है  :- शैलपुत्री   -  पहाड़ों की पुत्री है। ब्रह्मचारिणी   -  ब्रह्मचारीणी। चंद्रघंटा   -  चाँद की तरह चमकने वाली । कूष्माण्डा   -  पूरा जगत उनके पैर में है । स्कंदमाता   - कार्तिक स्वामी की माता । कात्यायनी   -  कात्यायन आश्रम में जन्मि । कालरात्रि   -  काल का नाश करने वाली । महागौरी   -  सफेद रंग वाली मां । सिद्धिदात्री   -सर्व सिद्धि देने वाली ।      शक्ति की उपासना का पर्व नवरात्र   ...

मंत्र पर ध्यान केन्द्रित करना ।

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क्या मंत्र जाप करते समय मन को ध्यान केंद्रित करने मे कठीनाई होती है ? क्या मंत्र जाप करते समय मन ध्यान केंद्रित नही  होता । 1)  जब तक मन ध्यानस्थ नही हो जाता तब तक मंत्र जाप का कोइ औचित्य नही है। ध्यान रहित मंत्र खोखला होता है , इसमे कोइ शक्ति नही होती । 2) मन मे उठने वाले अनेक विचारों के कारण मन ध्यान केंद्रित नही हो पाता। इस वक्त अनुलोम-विलोम प्राणायाम का सहारा ले । 3) प्राणायाम व्दारा मष्तिष्क को विचारों से खाली कर लीया जाता है , तदुपरांत किसी एक ऊद्दिष्ट पर , ध्यान केंन्दित करते हुये मंत्र को प्रस्पुटित किया जाता है । तेजी से सफलता प्राप्त होगी । 4) भोजन करने के बाद ध्यान न करे । 5) मंत्र का उच्चारण शुद्ध तथा स्पष्ट हो । 6) जो साधक प्रथमावस्था को पार करते हुये आगे कि सीढियों पर पहुंच गये हो उन्हे जादा सावधानी कि आवश्यकता होती है , कई बार मन को भयभित करने वाले प्रसंग उत्पन्न हो जाते है । इस वक्त तुरंत अपने गुरु का सहारा ले । गु...